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भारत में ऑफिस स्पेस की मांग बढ़ा रहा बैंकिंग-फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस सेक्टर

by Bhupendra Sahu

नई दिल्ली। बैंकिंग, फाइनेंशियल सर्विसेज और इंश्योरेंस (बीएफएसआई) एवं फ्लेक्स स्पेस सेक्टर ने ऑफिस स्पेस की मांग बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है। मंगलवार को आई एक रिपोर्ट के अनुसार, इस साल जुलाई-सितंबर की अवधि के दौरान भारत में बीएफएसआई 39 प्रतिशत का हिस्सेदार रहा, जो कि पिछली तिमाही से 20 प्रतिशत की वृद्धि को दर्शाता है।
इसके विपरीत, आईटी-आईटीईएस सेक्टर की हिस्सेदारी 2024 की तीसरी तिमाही में घटकर 23 प्रतिशत हो गई, जो कि दूसरी तिमाही में 38 प्रतिशत थी।
ऑक्यूपायर-फोकस्ड वर्कप्लेस सॉल्यूशन फर्म वेस्टियन की रिपोर्ट के अनुसार, यह मांग बदलाव पूरे देश में मांग-आपूर्ति की गतिशीलता को बदल सकता है।
मध्य पूर्व में बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच जुलाई-सितंबर की अवधि में 2024 में उच्चतम तिमाही अवशोषण दर दर्ज की गई, जो कुल 18.61 मिलियन वर्ग फीट थी।
रिपोर्ट के अनुसार, इसके अलावा, अवशोषण में पिछले वर्ष की तुलना में 17 प्रतिशत और पिछली तिमाही की तुलना में 9 प्रतिशत की वृद्धि भारत की मजबूत जीडीपी वृद्धि के लिए अहम हो सकती है।
दूसरी प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने कई बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों को नए ऑफिस स्पेस लीज पर लेने या विस्तार करने के लिए आकर्षित किया है।
मजबूत अवशोषण और आपूर्ति के बीच, पिछली तिमाही की तुलना में पैन इंडिया वैकेंसी में 90 बीपीएस की कमी आई, जो तीसरी तिमाही में 14.8 प्रतिशत तक पहुंच गई। टॉप शहरों में वैकेंसी में कमी के बावजूद, औसत किराया पिछली तिमाही की तुलना में सीमित रहा।
बेंगलुरू, चेन्नई और हैदराबाद ने 2024 की तीसरी तिमाही में पैन इंडिया अवशोषण का 61 प्रतिशत हिस्सा लिया। यह हिस्सा 2024 की दूसरी तिमाही में 55 प्रतिशत से भी बढ़ गया है, जिसका श्रेय बेंगलुरु के प्रमुख सूक्ष्म बाजारों में लीज पर देने की एक्टिविटी में वृद्धि को दिया जा सकता है।
2024 की दूसरी तिमाही में बेंगलुरु की हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से बढ़कर 2024 की तीसरी तिमाही में 36 प्रतिशत हो गई। दूसरी ओर, इसी अवधि के दौरान मुंबई की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से घटकर 12 प्रतिशत हो गई।
मुंबई और चेन्नई को छोड़कर सभी शहरों में तीसरी तिमाही के दौरान कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी में तेजी दर्ज की गई।
हैदराबाद में पिछली चार तिमाहियों में सबसे अधिक 4.10 मिलियन वर्ग फीट नए कंस्ट्रक्शन पूरे हुए, जबकि इसी अवधि के दौरान कोलकाता में कंस्ट्रक्शन एक्टिविटी धीमी रही।
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