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डॉलर के मुकाबले लुढ़कते रुपये से बढ़ेगी महंगाई, ये जरूरी सामान हो सकते हैं महंगे

by Bhupendra Sahu

मुंबई। डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में रिकॉर्ड गिरावट आ रही है। रुपया टूटकर अपने निचले स्तर 85.79 प्रति पर पहुंच गया है। यानी 1 अमेरिकी डॉलर कीमत 85 रुपए 79 पैसा हो गया है। रुपये के मूल्य में रिकॉर्ड गिरावट पर चिंता जताते हुए विशेषज्ञों का कहना है कि घरेलू मुद्रा के मूल्य में गिरावट से आयातित कच्चे माल के महंगा होने से उत्पादन लागत बढ़ेगी और कुल मिलाकर देश में महंगाई बढ़ सकती है जिससे आम लोगों की जेब पर प्रभाव पड़ेगा। जानकारों का कहन है कि कमजोर रुपये से मोबाइल फोन, टीवी, फ्रिज, एसी, पेंट आदि के दाम बढ़ जाएंगे। इसके अलावा विदेशों में पढऩा, विदेशों में घूमने का बोझ भी बढ़ेगा।

महंगाई बढ़ेगी लेकिन फायदा भी होगा
डॉलर के मुकाबले रुपये के मूल्य में कमी के कारण आम लोगों पर पडऩे वाले प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर जाने-माने अर्थशास्त्री और मद्रास स्कूल ऑफ इकनॉमिक्स के निदेशक प्रोफेसर एन आर भानुमूर्ति ने कहा, रुपये के मूल्य में गिरावट आयातित मुद्रास्फीति (आयातित महंगे कच्चे माल) से चीजें महंगी होंगी। उन्होंने कहा, हालांकि, अगर इससे निर्यात को गति मिलती है तब आर्थिक वृद्धि और रोजगार पर सकारात्मक असर पड़ सकता है। यदि रुपये में गिरावट बाजार की ताकतों (मांग और आपूर्ति) के कारण होती है, तो उत्पादन वृद्धि और महंगाई दोनों बढ़ेंगे।
कमजोर रुपये से आयात होता है महंगा
इस बारे में आनंद राठी शेयर्स एंड स्टॉक ब्रोकर्स के निदेशक (जिंस और मुद्रा) नवीन माथुर ने कहा, रुपये की विनिमय दर में गिरावट का सबसे बड़ा असर महंगाई बढऩे के रूप में होता है क्योंकि आयातित कच्चे माल और उत्पादन की लागत बढ़ जाती है जिसका बोझ अंतत: उपभोक्ताओं को उठाना होता है। इससे विदेश यात्रा और दूसरे देश में जाकर पढ़ाई करना महंगा हो जाता है। अर्थव्यवस्था पर इसके प्रभाव के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, यदि विनिमय दर पूरी तरह से बाजार की ताकतों के कारण बदल रही है, तो निर्यात और आयात में स्वत: समायोजन होगा। हालांकि, केंद्रीय बैंक के हस्तक्षेप के बारे में चर्चाएं हैं और हाल ही में सोने की खरीद के कारण चालू खाते के घाटे (कैड) में वृद्धि हुई है। कमजोर विनिमय दरों से आयात महंगा होता है, इससे देश में महंगाई बढ़ सकती है। इसका विभिन्न क्षेत्रों पर नकारात्मक असर होता है।
कंपनियों की लागत भी बढ़ेगी
विदेशी मुद्रा में कर्ज लेने वाली कंपनियों को भुगतान की अधिक लागत चुकानी पड़ेगी। और आयातित कच्चे माल पर निर्भर इकाइयों को कम लाभ मार्जिन देखने को मिल सकता है। साथ ही, यह भारत में विदेशी निवेश प्रवाह को सीमित कर सकता है। उन्होंने कहा, दूसरी तरफ, निर्यात से जुड़ी कंपनियों को स्थानीय मुद्रा के मूल्य में गिरावट का लाभ मिल सकता है। इसका कारण वे चीन के मुकाबले अधिक प्रतिस्पर्धी बन जाती हैं। सॉफ्टवेयर और विनिर्माण निर्यात को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि वे चीन की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे। डॉलर के मुकाबले रुपये की विनिमय दर में गिरावट के कारण के बारे में पूछे जाने पर भानुमूर्ति ने कहा, इसके दो मुख्य कारण हैं। एक तो तीसरी तिमाही में व्यापार घाटा बढ़ा, आयात में वृद्धि निर्यात में बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा रही।
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