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पशुधन के पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण में सहयोग करें वैज्ञानिक:मुर्मु

by Bhupendra Sahu

नई दिल्ली  राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने वैज्ञानिकों से पूर्वोत्तर की अनूठी फसलों, पशुधन और जैव विविधता से जुड़े स्वदेशी और पारंपरिक ज्ञान के दस्तावेजीकरण में सहयोग का आग्रह किया है।

श्रीमती मुर्मु ने वीडियो संदेश के माध्यम से मेघालय के उमियम में स्थित भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के अनुसंधान परिसर के स्वर्ण जयंती समारोह में भाग लिया।

राष्ट्रपति ने कहा कि प्रकृति के कई तरह के आशीर्वाद के बावजूद पूर्वोत्तर क्षेत्र को कृषि में अनूठी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता है जो इसकी लगभग 70 प्रतिशत आबादी की आजीविका का स्रोत है। उन्होंने अनुसंधान परिसर, उमियम में पिछले कुछ वर्षों में क्षेत्र की कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल 100 से अधिक फसल किस्में विकसित किये जाने की सराहना की। परिसर ने सूअर की नस्लों, मुर्गी की किस्म और हल्दी की किस्म विकसित करने में भी मदद की है।

धान, मक्का और बागवानी फसलों की उच्च उपज देने वाली और जलवायु-लचीली किस्मों को पेश करके, संस्थान ने खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण आजीविका को बढ़ाने में मदद की है। पिछले दस वर्षों में क्षेत्र में खाद्यान्न और बागवानी फसलों का उत्पादन क्रमशः 30 प्रतिशत और 40 प्रतिशत बढ़ा है।

इसके अलावा, बागवानी, पशुधन और मत्स्य पालन जैसे सभी कृषि-सहबद्ध क्षेत्रों में कृषि-आधारित उद्यमों पर ध्यान केंद्रित करने से आजीविका पैदा करने और युवाओं को कृषि में बनाए रखने में मदद मिली है। पिछले पांच वर्षों में पूर्वोत्तर में कृषि-उद्यमियों में 25 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जिसमें फूलों की खेती, जैविक खेती और स्थानीय उपज के मूल्य संवर्धन में कई युवा-संचालित उद्यम शामिल हैं।

 

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