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मेरी स्थिति भी रामलला प्राण-प्रतिष्ठा के बाद वशिष्ठ ऋषि जैसी : रामभद्राचार्य

by Bhupendra Sahu

अयोध्या । जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने सोमवार को कहा कि जब भगवान राम 14 वर्ष के वनवास के बाद लौटे थे तो उनकी स्थिति भी वशिष्ठ ऋषि जैसी ही थी। जगद्गुरु ने आज यहां राम जन्मभूमि मंदिर में राम लला के बाल स्वरूप विग्रह की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह के बाद संवाददाताओं से कहा, मैं अभी भी भावुक हूं। आज मेरी स्थिति वशिष्ठ की स्थिति के समान है जब भगवान राम वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे। मुझे और क्या कहना चाहिए। जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने हिंदू धर्मग्रंथों और तुलसीदास रचित ग्रथों का हवाला देकर भगवान राम के अस्तित्व और अयोध्या में उनकी भूमि के खिलाफ विपक्ष के दावों का खंडन किया। इन उद्धरणों ने रामभद्राचार्य की गवाही की पुष्टि करते हुए भगवान राम के पक्ष में उच्च्तम न्यायालय के 2019 के फैसले को काफी प्रभावित किया था।
उच्चतम न्यायालय में अपने हलफनामे में रामभद्राचार्य ने अयोध्या को हिंदुओं का पवित्र नगर और मर्यादा पुरुषोतम राम की जन्मभूमि के प्रमाण प्रस्तुत किए थे। उन्होंने इसमें संत कवि तुलसीदास के दो ग्रंथों के छंदों का भी हवाला दिया था। उन्होंने दोहा शतक के आठ छंदों का उल्लेख किया था जिनमें 1528 ईस्वी में अयोध्या में विवाद की जगह पर एक मंदिर ध्वंस कर एक मस्जिद के निर्माण का वर्णन है। उनके हलफनामे में तुलसीकृत कवितावली के एक छंद उल्लेख है जिसमें इस विवाद का उल्लेख किया गया है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य जन्मांध हैं। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के छोटे से गांव शांतिखुर्द में श्री गिरिधर मिश्र के घर में हुआ था। जगद्गुरु का एक आध्यात्मिक गुरु, दार्शनिक और विद्वान के रूप में बहुत सम्मान किया जाता है। उनकी आध्यात्मिक यात्रा उनके प्रारंभिक वर्षों में शुरू हुई और उन्होंने शिक्षा और धार्मिक अध्ययन दोनों में उल्लेखनीय प्रतिभा दिखाई।
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को वेद-पुराण और रामायण सहित की धार्मिक संस्कृत ग्रंथ कंठस्थ है और उनकी विद्ववता और तर्क शक्ति से उनकी बड़ी ख्याति है।
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