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सावन के दूसरे सोमवार को शिवमय हुई ट्विनसिटी, शिव महापुराण सुनने भक्तों का उमड़ा जनसैलाभ

by Bhupendra Sahu

शिवमहापुराण कथा का पांचवा दिन : CM विष्णुदेव साय की धर्मपत्नी लगातर चौथे दिन कथा में हुई शामिल
भिलाई। भिलाई के जयंती स्टेडियम मैदान में आयोजित शिव महापुराण कथा के पांचवें दिन सावन के दूसरे सोमवार होने की वजह से विशाल संख्या में शिव भक्त पंडाल में एकत्रित हुए। कथा के चौथे दिन रविवार को छुट्टी होने की वजह से जितने भक्त पंडाल के अंदर थे उतने ही वक्त पंडाल के बाहर थे और आज सोमवार को भी कुछ ऐसा ही नजारा देखें को मिला, मौसम भी खुला होने के कारण हजारों-लाखों की संख्या में लोग शिव महापुराण श्रवण करने पहुंचे। कथा स्थल में CM विष्णु देव साय की धर्मपत्नी कौशल्या साय लगातर चौथे दिन शिवमहापुराण श्रवण करने भिलाई पहुंची। BJP प्रदेश कोषाध्यक्ष नंदन जैन, दुर्ग शहर विधायक गजेंद्र यादव, देवेंद्र यादव की माता समेत कई लोह कथा में शामिल हुए।

पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा लोग मुझसे पूछते है कि, आप इतना खुश कैसे रहते हो? लोग आपको बुरा भला बोलते है, पंडित मिश्रा ने कहा कि, मैं इसलिए इतना खुश रहता हूं क्योकि जो मंदिर बंद पड़े थे, जिन मंदिरों में जाले लग रहे थे वो आज खुल गए है। पंडित प्रदीप मिश्र ने कहा जो भगवान की भक्ति करते है सनातन धर्म को मानते है जो रोज शिवकथा में जाते है उन्हें कई लोग बदनाम करते है। इसपर उन्होंने कहा- जो है नाम वाला, वही तो बदनाम है। पंडित प्रदीप मिश्रा ने पंडाल में मौजूद बालक और बालिकाओं से कहा कि, मेहनत करना बिल्कुल नहीं रोकना है, फर्क नहीं पड़ता आप कितने बार विफल हो रहे हो। आपको अपनी मेहनत निरंतर रूप से करनी है, मैं दावे से कह रहा हूं आने वाले समय में जब छत्तीसगढ़ में कथा होगी मेरे पास आपके जॉइनिंग लीटर के साथ पत्री होगी। उन्होंने कहा जैसे घोड़े के आंखों के दोनों साइड में पट्टी लगाया जाता है, ताकि वो इधर उधर न देखें और उसका ध्यान नहीं भटके, उसी तरह आपको भी सिर्फ अपनी मंजिल को देखना है अगल-बगल अपना ध्यान नहीं भटकने देना है।

इंसान की आखिरी मंजिल शमशान- पंडित प्रदीप मिश्रा
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, जब कोई मरता है तो हम अर्थी ले कर शमशान घात जाते है, शव को मंजिल तक ले जाते है, पर असल में हम शव को मंजिल तक नहीं, शव आपको आखिरी मंजिल दिखा रहा है। उन्होंने कागज के बारे में बताते हुए हुए कहा कि शिव महापुराण भागवत, गीता और रामायण सब कागज में लिखी गई है, न्यूज मैगजीन ऑफिस का काम भी कागज में होता है पर दोनों कागज में क्या फर्क है? बाकी कागजों में संसार की चीजें लिखी गई है और पुराण में परमात्मा की बातें लिखी गई है। परमात्मा के बारें में लिखी हुई चीजें संजोग करके रखा जाता है। शिव महापुराण की कथा कहती है जैसे कागज एक है पर उसमें अंकित क्या है यह अलग है, इसी तरह संसार में यह फर्क नहीं पड़ता कि आप ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो, गरीब हो या अमीर हो। जब माता की गर्भ से तुम पैदा हुए तो तुमको नहीं पता था कि तुम चल पाओगे कि नहीं, सुन पाओगे कि नहीं, बोल पाओगे कि नहीं। इसलिए हमें हमारी जिंदगी में क्या अंकित करना है, ये हमारे ऊपर है, हमारी संगती कैसी है। इंसान पर भरोसा करोगे तो टूट जाएगा, ईश्वर पर भरोसा करो, आपका भरोसा कभी नहीं टूटेगा।

भगवान शंकर भक्त की लेता है परीक्षा
पंडित प्रदीप मिश्रा ने बताया कि, हर्षवर्धन राजा शिवभक्ति में लीन रहते थे। राजा हर्षवर्धन को हर जगह जीत मिली। पंडित मिश्रा ने कहा कि, जो शिवभक्ति में लीन रहता है भगवान शिव उसकी कई बार परीक्षा लेता है, क्योकि महादेव उन्हें अपना लेते है। एक दिन महादेव ने राजा हर्षवर्धन की परीक्षा ले ली, शिव जी ब्राह्मण का रूप लेकर हर्षवर्धन के पास पहुंचे। ब्राह्मण के रूप में शिव जी राजा हर्षवर्धन को बोले आप शिव के भक्त है, आप शिव क्यों नहीं बनते? राजा हर्षवर्धन ने कहा मैं शिव कभी नहीं बन सकता, मेरा सामर्थ्य नहीं है की मैं शिव बन जाऊ। ब्राह्मण ने कहा ठीक है तुम शंकर नहीं बन सकते तो शिव के जैसा दान तो कर सकते हो? राजा हर्षवर्धन ने कहा हां मैं भगवान शिव के जैसे दान कर सकता हूं, राजा हर्षवर्धन ने अपने सारा सोना-चांदी जेवरात के साथ प्रयागराज पहुंच गए और अपना सभी धन-दौलत दान कर दिया। ब्राह्मण के रूप में शंकर जी ने कहा भगवान शंकर ने तो अपना सब कुछ दान कर दिया था, उन्होंने अपने कपड़े भी दान कर दिया था तुम तो कपड़े पहने हुए हो, इतने में उन्होंने अपना कपड़ा भी दान कर दिया और नग्न अवस्था में खड़े हो गए और उसी वक्त राजा हर्षवर्धन की बहन जयश्री ने देखा की मेरा बाई नग्न खड़ा है उसने उसे कुछ कपड़ा दिया। तब राजा हर्षवर्धन के आंखों से आंसू आने लगा। तब ब्राह्मण ने राजा से पूछा तुमने सब कुछ दान कर दिया इसलिए रो रहे हो? तब राजा हर्षवर्धन ने कहा नहीं बाबा जब मैं दुनिया में आया तब भी नग्न अवस्था में था, तब शंकर ने ही वस्त्र दिए अब जब मैं निर्वस्त्र हुआ तब भी शंकर भगवान ने ही मुझे वस्त्र दिए।

भगवान नहीं, उनके दास के दास के दास बनने का प्रयास करो
ब्राह्मण बोले तुम शिव को कोस नहीं रहे? राजा हर्षवर्धन ने जवाब दिया, नहीं बाबा उन्होंने मुझे जीवन दिया, मैंने दान किया हैना मेरा शिव मुझे खाली नहीं रख सकता ये मुझे विश्वास है, उसकी बहन जयश्री ने कहा चल तेरा सब कुछ राज्य भी भी चला गया, अब चल मेरे घर, राजा हर्षवर्धन ने कहा मैं चले तो जाऊंगा पर मेरा शंकर मेरे नगर में अकेला बैठा होगा। मुझे वहां जाना होगा। राजा हर्षवर्धन ने कहा मैं अपनी धन दौलत के लिए वापस नहीं जाऊंगा, अपने महादेव के लिए जाऊंगा। जैसे राजा हर्षवर्धन अपने नगर गए, भगवान शंकर ने ब्राह्मण के रूप में राजा हर्षवर्धन को दान किया हुए धन जेवर से हजार गुना ज्यादा लौटा दिया। पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि, शिव महापुराण की कथा कहती है, भगवान बनने का प्रयास मत करो, भगवान का कोई दास हो उस दास का भी कोई दास हो उसके दास बनने की कोशिश करो। भगवान जब परीक्षा लेता है तो उससे ज्यादा आपको फल देता है।

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