रायपुर : छत्तीसगढ़ तथा देश के अन्य राज्यों में व्यावसायिक खेती और गुणवत्ता बीज उत्पादन के लिए अधिसूचित
-केन्द्रीय बीज उपसमिति ने की अनुशंसा
छत्तीसगढ़ राज्य के इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित विभिन्न फसलों की 12 नवीन किस्मों को व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन के लिए भारत सरकार की केन्द्रीय बीज उपसमिति ने अधिसूचित किया है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक फसल विज्ञान की अध्यक्षता में आयोजित केन्द्रीय बीज उपसमिति की बैठक में इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, रायपुर द्वारा विकसित चावल की तीन, गेहूँ की दो, चने की एक, सोयाबीन की तीन, कुसुम की एक और अलसी की दो नवीन किस्मों को छत्तीसगढ़ तथा देश के अन्य राज्यों में व्यावसायिक खेती एवं गुणवत्ता बीज उत्पादन हेतु अधिसूचित किया गया है। आगामी वर्षों से विश्वविद्यालय द्वारा विकसित इन सभी नवीन किस्मों को व्यावसायिक खेती तथा गुणवत्ता बीजोत्पादन कार्यक्रम में लिया जायेगा।
केन्द्रीय बीज उपसमिति ने इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित जिन नवीन फसल किस्मों को अधिसूचित किया है उनमें धान की तीन नवीन किस्मों – विक्रम टी.सी.आर. (विक्रम ट्रॉम्बे छत्तीसगढ़ चावल), सी.जी. जवांफूल ट्रॉम्बे (आर.टी.आर.-31), सी.जी. बरानी धान-2 (आर.आर.एफ.-105) को छत्तीसगढ़ राज्य हेतु अधिसूचित किया गया है। गेहूँ की नवीन किस्म – सी.जी.-1029 (कनिष्क) को छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान के (कोटा और उदयपुर संभाग) और उत्तर प्रदेश के (झांसी संभाग) हेतु तथा छत्तीसगढ़ हंसा गेहूँ (सी.जी.-1023) को छत्तीसगढ़ राज्य हेतु अधिसूचित किया गया है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित चने की नवीन किस्म – आर.जी.2015-08 (सी.जी. लोचन चना) को छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों हेतु अधिसूचित किया गया है। इसी प्रकार सोयाबीन की नवीन किस्म – आर.एस.सी. 11-07 को पूर्वी क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओडिशा और छत्तीसगढ़ तथा दक्षिणी क्षेत्र (दक्षिण महाराष्ट्र, कर्नाटक, तेलंगाना, आन्ध्रप्रदेश और तमिलनाडु) राज्यों हेतु अधिसूचित किया गया है। सोयाबीन की किस्म आर.एस.सी.-10-46 को पूर्वी क्षेत्र (पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखण्ड, ओड़िशा और छत्तीसगढ़) तथा मध्य क्षेत्र (मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ) क्षेत्र हेतु अधिसूचित किया गया है। सोयाबीन की नवीन किस्म आर.एस.सी.-1052 को (मध्यप्रदेश उत्तरप्रदेश के बुंदेलखण्ड क्षेत्र, राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र के मराठवाड़ा और विदर्भ) क्षेत्र हेतु अधिसूचित किया गया है। कुसुम की नवीन किस्म आई.जी.के.वी. कुसुम (आर.एस.एस.-2016-30) को छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश राज्यों हेतु अधिसूचित किया गया है। इसी प्रकार विश्वविद्यालय द्वारा विकसित अलसी की नवीन किस्म आर.एल.सी.-164 तथा आर.एल.सी.-167 को जम्मू-कश्मीर, हिमाचलप्रदेश, पंजाब और छत्तीसगढ़ राज्यों हेतु अधिसूचित किया गया है।
इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय द्वारा विकसित और भारत सरकार द्वारा अधिसूचित विभिन्न फसलों की नवीन किस्में विशिष्ट गुणधर्मों और विशेषताओं से परिपूर्ण हैं। धान की विक्रम टी.सी.आर. किस्म सफरी-17 प्रजाति के म्यूटेशन ब्रीडिंग द्वारा विकसित की गई है। यह एक बौनी, मध्यम अवधि (118-122 दिन) तथा अधिक उत्पादन (60-65 क्ंिवटल प्रति हेक्टेयर) देने वाली किस्म है। इसके दाने पतले तथा मुर्रा बनाने हेतु उपयुक्त हैं। छत्तीसगढ़ जवांफूल ट्रॉम्बे किस्म छत्तीसगढ़ की पारंपरिक सुगंधित धान प्रजाति जवांफूल के म्यूटेशन ब्रीडिंग द्वारा विकसित की गई है। यह एक मध्यम बौनी, मध्यम अवधि तथा अधिक उपज (38-40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) देने वाली किस्म है। इसके दाने छोटे और सुगंधित तथा खीर बनाने के लिए बेहद उपयुक्त है। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ बरानी धान-2 किस्म छत्तीसगढ़ के मैदानी क्षेत्रों के वर्षा आश्रित निचली भूमि के लिए उपयुक्त है। यह किस्म सूखा निरोधक जल्द पकने वाली तथा ब्लास्ट और भूरा धब्बा रोग के प्रति सहनशील है। गेहूँ की नवीन विकसित किस्म सी.जी.-1029 (कनिष्क) बड़े दानों (1000 दानों का वजन 48.7 ग्राम) तथा अधिक प्रोटीन (12 प्रतिशत) वाली किस्म है, जो चपाती बनाने के लिए उपयुक्त है। इसमें आवश्यक सूक्ष्म तत्व – आयरन (38 पी.पी.एम.) और जिंक (35 पी.पी.एम.) भी पाये जाते हैं। यह किस्म भूरे एवं काले रस्ट रोगों हेतु प्रतिरोधी पाई गई है। इसका औसत उत्पादन 52 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। छत्तीसगढ़ हंसा गेहूँ – सी.जी.-1023 एक बायोफोर्टिफाईड किस्म है, जिसमें 11.85 प्रतिशत प्रोटीन तथा जिंक की मात्रा 40 पी.पी.एम. से अधिक पाई गई है, यह चपाती बनाने के बेहद उपयुक्त है। इसके 1000 दानों का वजन 42 ग्राम होता है। यह किस्म भूरे, काले एवं पीले रस्ट रोग हेतु प्रतिरोधी पाई गई है। इसकी औसत उपज 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
सोयाबीन की नवीन किस्म आर.एस.सी. 11-07 अनेक रोगों एवं कीटों हेतु प्रतिरोधी पाई गई है। यह किस्म इंडियन बड ब्लाइट, पॉट ब्लाइट रोगों तथा स्टैम फ्लाई और गर्डल बीटल कीटों के प्रति निरोधक है। यह 97 से 102 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है तथा 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज देने में सक्षम है। सोयाबीन की आर.एस.सी. 10-46 किस्म 102-104 दिन अवधि की 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली प्रजाति है। इस किस्म में फली बिखरने की समस्या कम होती है। यह किस्म चारकोल रॉट, बड ब्लाइट, बैक्टिरियल पश्चूल आदि रोगों तथा तना छेदक, स्टेम फ्लाई और गर्डल बीटल जैसे कीटों के प्रति निरोधक पाई गई है। सोयाबीन की आर.एस.सी. 10-52 किस्म 101 दिन में पकने वाली और 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन देने वाली किस्म है। इसमें भी फली बिखरने की समस्या कम पाई जाती है। यह किस्म पीला मोजैक वायरस और राइजोक्टोनिया ऐरियल ब्लाइट रोगों के प्रति मध्यम निरोधक, स्टेमबोरर एवं डिफोलियेटर, स्टेम फ्लाई और गर्डल बीटल के प्रति निरोधक पाई गई है। चने की नवीन किस्म छत्तीसगढ़ लोचन चना (आर.जी. 2015-08) 105 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है तथा 22 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। यह किस्म कॉलर रॉट एवं स्टंट रोगों के प्रति मध्यम सहनशील है।
कुसुम की नवीन विकसित किस्म आई.जी.के.वी. कुसुम (आर.एस.एस. 2016-03) अधिक तेल (34 से 35 प्रतिशत) की मात्रा वाली किस्म है। इसमें तेल की मात्रा अन्य किस्मों की अपेक्षा काफी अधिक है। यह 138 से 140 दिन में पकने वाली तथा 27 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देने वाली किस्म है। इसके फूलों का रंग फ्लावरिंग के समय पीला होता है जो बाद में सूखते समय लाल हो जाता है। यह किस्म अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट रोग के प्रति पर्याप्त निरोधक है। अलसी की नवीन किस्म आर.एल.सी.-164 वर्षा आश्रित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 150 से 160 दिन में पकती है तथा 12.6 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देती है। इसके दानों में तेल की मात्र 32.6 प्रतिशत तक पाई जाती है। यह किस्म अल्टरनेरिया ब्लाइट एवं रस्ट रोगों के प्रति निरोधक है। इसी प्रकार अलसी की आर.एल.सी.-167 किस्म सिंचित क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त है। यह किस्म 161 दिनों में पकती है तथा 13 क्विंटल प्रति हैक्टेयर औसत उपज देती है। इसके बीजों में तेल की मात्रा 34.25 प्रतिशत तक पाई गई है। यह किस्म बड फ्लाइ कीट के प्रति निरोधक है।