इंदौर की सुदीप्ति हजेला, जयपुर की दिव्याकृति सिंह, मुंबई के विपुल ह्रदय छेड़ा और कोलकाता के अनुश अगरवाला का घुड़सवारी के ड्रेसेज में स्वर्ण पदक संघर्ष और त्याग की कहानी है। एक समय वह भी आया था जब इन घुड़सवारों का एशियाड में भाग लेना ही तय नहीं था। ये घुड़सवार अगर अदालत की शरण नहीं लेते तो शायद एशियाड में नहीं खेल रहे होते।
बाधा यहीं नहीं थी, चीन ने भारत से अपने यहां घोड़े लाने की अनुमति नहीं दी थी, जिसके चलते इन घुड़सवारों को दो या उससे अधिक वर्षों से घोड़ों के साथ यूरोप में रहना पड़ा। शहर से दूर जंगल जैसे इलाकों में अकेले रहकर खुद खाना बनाना पड़ा और घोड़ों की भी सेवा करनी पड़ी। यही नहीं सुदीप्ति को तो जमीन गिरवीं रखकर लिए गए लोन से 75 लाख का घोड़ा दिलवाया गया।