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सुप्रीम कोर्ट ने नागरिकता कानून की धारा 6ए की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुरक्षित रखा

by Bhupendra Sahu

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
धारा 6ए के खिलाफ याचिकाएं मुख्य रूप से असम समझौते के प्रावधानों को चुनौती देती हैं, जिसने 2019 में प्रकाशित असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) का आधार बनाया।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ में शामिल जस्टिस सूर्यकांत, एम.एम. सुंदरेश, जे.बी. पारदीवाला और मनोज मिश्रा दोनों पक्षों की मौखिक दलीलें सुनने के बाद जल्द ही अपना फैसला सुनाएंगे।
सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूर्वोत्तर राज्यों, विशेषकर असम से भारतीय क्षेत्र में अवैध अप्रवासियों की आमद को रोकने के लिए उठाए गए प्रशासनिक कदमों के बारे में जानकारी देने को कहा था।
इसने नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6 ए (2) के तहत 1 जनवरी, 1966 और 25 मार्च, 1971 के बीच असम में नागरिकता प्रदान किए गए बांग्लादेशी प्रवासियों की संख्या के बारे में केंद्र और असम सरकारों से एक आम हलफनामा मांगा था।
जवाब में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि अवैध प्रवासी गुप्त तरीके से देश में प्रवेश करते हैं, इसलिए ऐसे लोगों का सटीक डेटा एकत्र करना संभव नहीं है।
सीजेआई के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने सितंबर में प्रक्रियात्मक निर्देश पारित किए थे।
इससे पहले, शीर्ष अदालत ने कहा था कि मामले में प्राथमिक प्रश्?न यह है कि क्या नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए किसी संवैधानिक कमजोरी से ग्रस्त है।
संशोधित धारा 6ए में प्रावधान किया गया है कि भारतीय मूल के सभी व्यक्ति जो 1 जनवरी, 1966 से पहले निर्दिष्ट क्षेत्र से असम आए थे (उन लोगों सहित जिनके नाम आम चुनाव के प्रयोजनों के लिए उपयोग की जाने वाली मतदाता सूची में शामिल थे) 1967 में आयोजित लोकसभा) और जो असम में अपने प्रवेश की तारीखों से सामान्य रूप से असम के निवासी हैं, उन्हें 1 जनवरी, 1966 से भारत का नागरिक माना जाएगा।
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